धर्म एवं दर्शन >> हिन्दुओं के तीर्थ स्थान हिन्दुओं के तीर्थ स्थानयोगेश्वर त्रिपाठी
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मुख्य तीर्थ स्थानों का वर्णन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
उत्तरा खण्ड
मायापुरी हरिद्वार (पुरी-1)
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका।
पुरीद्वारावती चैव सप्तेते मोक्षदायिकाः।।
पुरीद्वारावती चैव सप्तेते मोक्षदायिकाः।।
1-अयोध्या, 2-मथुरा 3-माया-हरिद्वार, 4-काशी (वाराणसी,) 5-काञ्ची
6-अवन्तिका (उज्जैन) और 7-द्वारिका यो सात पुरियाँ मोक्ष देने वाली हैं।
स्वर्गद्वारेण तत्तुल्यां गंगाद्वारं न संशयः।
तत्राभिषेकं कुर्वोत कोटितीर्थे समाहिताः।।
तत्राभिषेकं कुर्वोत कोटितीर्थे समाहिताः।।
इसमें सन्देह नहीं कि हरिद्वार स्वर्ग के द्वार के समान है। वहाँ
कोटितीर्थ-ब्रह्मकुंड में एकाग्रचित से स्नान करे।
हरिद्वार में बहरवें वर्ष जब सूर्य-चन्द्र मेष तथा गुरु कुम्भारासि में होते हैं तो कुम्भ का मेला होता है। छठवें वर्ष अर्धकुम्भी मेला होता है।
उत्तर रेलवे का हरिद्वार प्रसिद्ध स्टेशन है। यहाँ ठहरने के लिये अनेक धर्मशालायें हैं। साधु-महात्माओं के आश्रम यहाँ बहुत हैं। उनमें भी यात्री ठहरते हैं।
हरिद्वार में बहरवें वर्ष जब सूर्य-चन्द्र मेष तथा गुरु कुम्भारासि में होते हैं तो कुम्भ का मेला होता है। छठवें वर्ष अर्धकुम्भी मेला होता है।
उत्तर रेलवे का हरिद्वार प्रसिद्ध स्टेशन है। यहाँ ठहरने के लिये अनेक धर्मशालायें हैं। साधु-महात्माओं के आश्रम यहाँ बहुत हैं। उनमें भी यात्री ठहरते हैं।
1-ब्रह्मकुण्ड या हरकी पैड़ी—
स्नान करने का यह मुख्य स्थान है।
राजा
सश्वेत ने यहाँ तप करके ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान माँगा
था—‘यहाँ शंकरजी तथा विष्णु भगवान् सब तीर्थों के साथ
रहे
हैं।’’
महायोगी भर्तृहरि ने भी यहीं तपस्या की अतः उनके भाई महाराज विक्रमादित्य ने यहाँ कुण्ड और सीढ़ियाँ (पौड़ियाँ) बनवाईं। इस कुण्ड में गंगाजल एक ओर से आकर दूसरी ओर निकल जाता है। धारा तेज है, पर जल कमर जितना ही है।
इस कुण्ड में श्रीहरि की चरणपादुका, मनसादेवी, साक्षीस्वर शिव तथा गंगाधर महादेव के मन्दिर हैं। सांयकाल यहाँ गंगाजी की आरती दर्शनीय होती है।
महायोगी भर्तृहरि ने भी यहीं तपस्या की अतः उनके भाई महाराज विक्रमादित्य ने यहाँ कुण्ड और सीढ़ियाँ (पौड़ियाँ) बनवाईं। इस कुण्ड में गंगाजल एक ओर से आकर दूसरी ओर निकल जाता है। धारा तेज है, पर जल कमर जितना ही है।
इस कुण्ड में श्रीहरि की चरणपादुका, मनसादेवी, साक्षीस्वर शिव तथा गंगाधर महादेव के मन्दिर हैं। सांयकाल यहाँ गंगाजी की आरती दर्शनीय होती है।
2-गऊघाट-
ब्रह्मकुण्ड से दक्षिण है। यहाँ गोहत्या के
पाप से मुक्ति के लिये
स्नान किया जाता है।
3-कुशावर्त घाट-
यहाँ दत्तात्रेय जी ने दस हजार वर्ष तप किया
था।
4- रामघाट-
यहाँ श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक है।
5-विष्णुघाट-
यहाँ श्रीभगवान् विष्णु ने तप किया था।
गणेशघाट-
यहाँ श्री गणेशजी की विशाल मूर्ति है।
7-नारायणी शिला-
गणेश घाट से थोड़ी दूर पर नारायणी शिला है।
इस पर पिण्डदान होता है।
8- श्रवणनाथ मन्दिर-
कुशावर्त के दक्षिण यह दर्शनीय मन्दिर है।
9-नीलेश्वर-
नहर पार करके जाने पर गंगाजी की नील धारा
मिलती है। उसमें
स्नान करके पर्वत पर नीलेश्वर महादेव के दर्शन का बडा माहात्म्य है।
10-कालीमन्दिर-
वहीं नीलधारा पार चण्डी पहाड़ी के मार्ग में
कौल-सम्प्रदाय
का काली मन्दिर है।
11-चण्डी देवी-
नील पर्वत के शिखर पर चण्डी देवी का मन्दिर
है। यहाँ आने के
लिये दो मील की कड़ी चढ़ाई पड़ती है। ऊपर जाने के दो मार्ग हैं। एक से
जाकर दूसरे से उतरने पर सब मन्दिरों के दर्शन हो जाते हैं। इनमें
गौरीशंकर, नीलेश्वर तथा नागेश्वर मुख्य हैं।
12-अंजनी देवी—
चण्डी मन्दिर के पास ही अंजनी देवी का मन्दिर
है।
13- विल्केश्वर-
हरिद्वार स्टेशन से थोड़ी दूर पर पर्वत पर
जाने का सुगम
मार्ग है। ऊपर विल्वकेश्वर शिव मन्दिर है। ऊपर देवी–मन्दिर भी
है।
14-भीमगोडा-
हरकी पैड़ी से आगे पहाड़ के नीचे सड़क के पास
ही एक कुंड है।
यहाँ कुछ मूर्तियाँ हैं। इस कुण्ड में स्नान का महत्त्व है।
15- चौबीस अवतार-
यह मन्दिर भीमगोडा से आगे है।
16-सप्तधारा-
इसे लोग सप्त सरोवर भी कहते हैं। यह भीमगोडा
से एक मील आगे
है। सप्तर्षियों ने यहाँ तपस्या की थी। अतः उनके लिये यहाँ गंगा जी सात
धाराओं में बहीं। हाँ सप्तर्षि आश्रम और परमार्थआश्रम अच्छे दर्शनीय हैं।
कनखल
हरकी पौड़ी से कनखल तीन मील है। यहाँ स्नान का बड़ा महात्म्य है।
1-दक्षप्रजापति का मन्दिर-
यह कनखल का मुख्य मन्दिर है। यहीं दक्ष के
यज्ञ
में सती ने देह-त्याग किया था। यह क्षेत्र दर्शन से ही जन्म-जन्मान्तर के
पापों से मुक्त करने वाला है। मायापुरी की यात्री इसके दर्शन किये बिना
सफल नहीं होती।
2-सतीकुंड-
सती के देहत्याग का स्थान दक्षेस्वर से आधे मील पर है।
कनखल में अवधूत आश्रम में दर्शनीय मूर्तियाँ हैं।
कनखल में अवधूत आश्रम में दर्शनीय मूर्तियाँ हैं।
सत्यनारायण-
हरिद्वार से मोटर बस से ऋषकेश जाते समय
सप्तधारा से तीन मील
आगे मन्दिर है। स्नान के लिये यहाँ कुंड है।
वीरभद्रेश्वर-
सत्यनारायण से पाँच मील पर यह मन्दिर है।
ऋषिकेश
यह भगवान शिव एवं विष्णु का अभिन्न क्षेत्र है। यहाँ राजा रुरु ने तप करके
भगवान् शंकर का दर्शन किया था। तबसे यह बराबर तपस्वियों ती स्थली रही है।
हरिद्वार रेल, मोटर बस और टैक्सी तीनों आती हैं।
1. त्रिवेणीघाट—
यहां पर यात्री
स्नान करते हैं।
2- भरत मन्दिर—
यहाँ का मुख्य मन्दिर भरत मन्दिर है। इसके
अतिरिक्त राम मन्दिर, वाराह मन्दिर चन्देश्वर मन्दिर आदि कई हैं।
3-मुनि की रेती—
ऋषिकेश बाजार से डेढ़ मील पर यह स्थान है।
यहाँ
कैलाशाश्रम और स्वामी शिवानन्दाश्रम दर्शनीय हैं।
4- स्वर्गाश्रम—
मुनि की रेती से नौका द्वारा गंगा पार करने
पर
स्वर्गाश्रम पहुंचा जाता है। यहाँ स्वर्गाश्रम, गीता-भवन, परमार्थ-निकेतन
तथा अनेक आश्रम हैं, महर्षि महेश का शंकराचार्य नगर यहीं है।
5-लक्ष्मण झूला—
मुनि की रेती से डेढ़ मील पर झूले के पुल से
पार
करना होता है। स्वर्गाश्रम से सड़क का मार्ग है। यहाँ लक्ष्मण जी का
मन्दिर मुख्य है।
ऋषिकेश का पौराणिक नाम ‘कुजाम्रक’ है। यह तपः स्थली है।
ऋषिकेश का पौराणिक नाम ‘कुजाम्रक’ है। यह तपः स्थली है।
यमुनोत्तरी
तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना यत्र निस्सृता।
सर्वपाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम्।।
सर्वपाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम्।।
जहाँ से यमुना निकली है, वहाँ स्नान करके अथवा वहाँ का जल पीकर मनुष्य
पापों से छूट जाता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते है।
यात्रा का समय-
यह यात्रा प्रायः 15 अप्रैल से प्रारम्भ होती
है और दीपावली
तक चलती है।
यमुनोत्तरी मार्ग—
अब सामान्यतः ऋषिकेष के दरासू होकर मोटर बस
जाती
है। ऋषिकेश से यमुनोत्तरी 131 मील है। केवल 6 मील पैदल मार्ग है।
खरसाली—
यमुनोत्तरी के पंडे यहीं रहते हैं। इसके आगे
कड़ी सर्दी
मिलती है और विषैली मक्खियाँ।
यमुनोत्तरी—
यह स्थान समुद्र से दस हजार फिट ऊँचा है काली
कमली
की
कई धर्मशालायें हैं। यहाँ गरम पानी के कई कुंड हैं। उनमें पानी खौलता रहता
है। यात्री कपड़े में बाँध कर आलू–चावल उसमें डुबा रखते है तो
वे पक
जाते हैं।
इस गरम कुण्डों में स्नान करना सम्भव नहीं है। स्नान के लिये अलग कुण्ड बना है, जिनमें जल कुछ शीतल रहता है। यमुना-जल इतना शीतल है कि उसमें भी स्नान नहीं किया जा सकता है। कलिन्द पर्वत से बहुत ऊँचे से हिम पिघल कर यहाँ जल के रूप में गिरता है। इसी से यमुना का नाम कालिन्दी है।
यहाँ छोटा सा यमुना जी का मन्दिर है। यहाँ असित मुनि का आश्रम था। उनके तप से गंगाजी का एक छोटा झरना यहाँ प्रगट हुआ जो अभी है।
इस गरम कुण्डों में स्नान करना सम्भव नहीं है। स्नान के लिये अलग कुण्ड बना है, जिनमें जल कुछ शीतल रहता है। यमुना-जल इतना शीतल है कि उसमें भी स्नान नहीं किया जा सकता है। कलिन्द पर्वत से बहुत ऊँचे से हिम पिघल कर यहाँ जल के रूप में गिरता है। इसी से यमुना का नाम कालिन्दी है।
यहाँ छोटा सा यमुना जी का मन्दिर है। यहाँ असित मुनि का आश्रम था। उनके तप से गंगाजी का एक छोटा झरना यहाँ प्रगट हुआ जो अभी है।
गंगोत्तरी
गंगोद्भेदं समासाद्य त्रिरात्री पोषितो नरः।
वाजपेयमवाप्नोति ब्रह्मभूतो भवेत्सदा।।
वाजपेयमवाप्नोति ब्रह्मभूतो भवेत्सदा।।
गंगा जहां से अवतरित होती है, वहाँ जाकर तीन रात्रि उपवास करके स्नान करने
से मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता है और सदा के लिये ब्रह्मभूत हो जाता है।
यमुनोत्तरी से जिस मार्ग से गये हैं, उसी से गंगाणी तक लौट आना चाहिये। लोक-निर्माण-विभाग, प्रति वर्ष मोटर बस, योग्य सड़कें बनाता जा रहा है। इसलिए पैदल मार्ग कम होता जा रहा है। जहाँ से मोटर बस मिल जावे, वहाँ से बस पकड़कर बकोट होते उत्तरकासी चले जाना चाहिये।
यमुनोत्तरी से 6 मील लौटकर मोटर बसें उत्तरकाशी को मिल जाती हैं। उत्तरकाशी एक प्रधान तीर्थ स्थल है। यहाँ कई धर्मशालायें हैं। अनेक आश्रम और मन्दिर हैं। इनमें विश्वनाथ मन्दिर दर्शनीय है। यहाँ जड़भरत का आश्रम था। उसके पास ब्रह्म कुण्ड में स्नान, तर्पण होता है, इसमें सदा गंगाजल रहता है।
2-यात्री को ऋषिकेश से सीधे गंगोत्तरी जाना हो तो भी बस मिलती है।
यमुनोत्तरी से जिस मार्ग से गये हैं, उसी से गंगाणी तक लौट आना चाहिये। लोक-निर्माण-विभाग, प्रति वर्ष मोटर बस, योग्य सड़कें बनाता जा रहा है। इसलिए पैदल मार्ग कम होता जा रहा है। जहाँ से मोटर बस मिल जावे, वहाँ से बस पकड़कर बकोट होते उत्तरकासी चले जाना चाहिये।
यमुनोत्तरी से 6 मील लौटकर मोटर बसें उत्तरकाशी को मिल जाती हैं। उत्तरकाशी एक प्रधान तीर्थ स्थल है। यहाँ कई धर्मशालायें हैं। अनेक आश्रम और मन्दिर हैं। इनमें विश्वनाथ मन्दिर दर्शनीय है। यहाँ जड़भरत का आश्रम था। उसके पास ब्रह्म कुण्ड में स्नान, तर्पण होता है, इसमें सदा गंगाजल रहता है।
2-यात्री को ऋषिकेश से सीधे गंगोत्तरी जाना हो तो भी बस मिलती है।
गंगोत्तरी
यह स्थान यमुनोत्तरी की समान ऊँचाई पर है। कई धर्मशालायें हैं। अन्नसत्र
भी है।
मुख्य मन्दिर गंगा-मन्दिर है। आदि शकंराचार्य जी ने यहाँ गंगाजी की मूर्ति स्थापना की है। मन्दिर में यमुना, सरस्वती, राजा भगीरथ तथा शंकराचार्य की मूर्तियाँ भी है। समीप ही भैरव-मन्दिर है।
मुख्य मन्दिर गंगा-मन्दिर है। आदि शकंराचार्य जी ने यहाँ गंगाजी की मूर्ति स्थापना की है। मन्दिर में यमुना, सरस्वती, राजा भगीरथ तथा शंकराचार्य की मूर्तियाँ भी है। समीप ही भैरव-मन्दिर है।
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